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संगीत शिक्षा

  मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ अनेक विधाओं का जन्म हुआ। भौंरों का गुंजन नदियों का कलकल पक्षियों की चहचहाट की उपमा वीणा वादिनी पुत्रों ने संगीत के रूप में दी है शायद संगीत की रूचि मानव मन में यही से प्रारम्भ हुई। कालखण्डानुसार शनैः शनैः इसका विकास हुआ। भारतीय मान्यतानुसार संगीत कला के जनक स्वयं ब्रह्माजी है। चारो वेद व नाट्य शास्त्र जिसमें संगीत की महत्ता है ये ब्रह्माजी के मुखार विन्द से उपजे है।

      ब्रह्माजी ने संगीत विद्या शिवजी को शिवजी ने माँ शारदा, माँ शारदा ने नारदजी को और नारदजी द्वारा भरत हनुमान ऋषियों सहित स्वर्ग में संगीत शिक्षा प्रदान की।

      पृथ्वी लोक में उस काल में रावण जैसे संगीत के प्रकाण्ड विद्यमान सुग्रीव जैसे वीणा वादक भगवान कृष्ण बांसुरी वादक हुए। शास्त्रीय संगीत का परचम पूरे भूलोक में लहरा।

      मुस्लिम काल में शास्त्रीय संगीत में परिवर्तन प्रारम्भ हुआ संस्कृत भाषा की अज्ञानता के कारण शास्त्रीय संगीत नहीं समझते परन्तु संगीत शिक्षा के प्रति आदर व अनुराग के कारण यह शिक्षा काफी प्रगति कर चुकी।

      इस काल में बादशाहों के दरबार में अनेक संगीत विद्ववानों को उच्च स्थान प्राप्त था। इसमें अमीर खुशरों स्वामी हरीदास बैजु बावरा तान सैन गोवाल नायक लोहंग चरजू जैसे श्रेष्ठ संगीत साधक हुए है।

      समय के साथ-साथ नये-नये वाद्य यंत्रों का आविष्कार हुआ तराना खमरा ख्याल आदि गीत ग्रन्थों की रचना हुई। इन्हीं में तबला सारंगी रबाब का आविष्कार हुआ तराना खमरा ख्याल आदि गीत प्रकार झूमरा आडा चैताल परतों आदि ताल प्रकार साजगिरी सरपर्दा बरारी आदि राग का आविष्कार हुआ।

      संगीत शास्त्रकारों ने ग्रन्थ लेखन किया पं. विहल सद्राम चन्द्रोदय रागमाला पं. दामोदर संगीत दर्पण पं. सोमनाथ राम विवोध तुलाजीराव भोंसले कृत संगीत सारा मृत भारतीय संगीत में मुस्लिम संगीत का प्रभाव पड़ा संगीत की जो आध्यात्मिक आभा थी वह अब नहीं रही लेकिन शासक संगीत के शौकीन होने के कारण यह विद्या नष्ट नहीं हुई।

अंग्रेजों के काल में इसके विकास में बाधा आने लगी कारण अंग्रेज भारत की हर कला को तुछ समझते थे इनको शास्त्रों व आध्यात्मिक ज्ञान का अभाव भी विकास में बाधर रहा।

      परन्तु आजादी के बाद सरकार द्वारा संगीत उत्थान के भरसक प्रयत्न हुए। संगीत भाषा सात शुद्ध तथा पाँच विक्रत कुल बारह स्वरों की है। युद्ध भूमि में सैनिक सर्वस्व अर्पण करने की प्रेरणा या मांगलिक प्रसंग सभी में भारतीय संगीत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। संगीत में भावनात्मक एकात्मता स्थापित करने की क्षमता है। यह सीखने व सीखाने वाले दोनों को हृदय से समीपता प्रदान करने वाला है। संगीत माधुर्यता कोमलता निर्माण करने तथा स्वयं की अभिव्यक्ति करने का श्रेष्ठ माध्यम है। संगीत मन को पवित्र करता है किसी विद्वान ने लिखा है - साहित्य संगीत कला विहीना: साक्षात् पशु पुध विषाण हीनाः।

      आधुनिक काल में पश्चिम का पॉप संगीत के नाम पर जो शोर है वह भारतीय संगीत की महत्ता को कम नहीं कर सकता, वर्तमान काल में सुरों की लहरीया गंगा की तरह अनन्त प्रवाह में बिखेरने गए । भीमसैन जोशी चौरसिया जाकिर हुसैन आदि सरस्वती पुत्र है। आत्मा में आध्यात्मिक अलख जगाने वाले भारतीय संगीत पर अनेक नूतन प्रयोग वनस्पति पशु व चिकित्सा जगत हुए है। इसके सार्थक परिणाम प्राप्त हो रहे है मधुर धुन मानव मन को प्रफुलित तो क्या बीन पर जहरीला साँप भी झूमने लगता है।

      आज युवा वर्ग पाश्चात्य धुनों को पसंद करता है थिरकता है परन्तु विवाह जैसे मांगलिक प्रसंगों पर आज भी ’’बहारों फूल बरसाओं की सुरलहरिया बिखरती है’’ ये भारतीय संगीत की मधुरता महत्ता है।

      विद्या भारतीय ने शिक्षा के आधारभूत विषयों में स्थान इसकी महत्ता आवश्यकता व सार्थकता को समझते हुए दिया है। अतः बालक का सर्वांगीण विकास इसके बिना असंभव है।

      आचार्य देश बन्धु अनुसार- कला संगीत न केवल बाह्य जगत को रोमांचित प्रभावित करती है अपितु व्यक्ति के अन्तर्गत को भी अनुप्राणित करती है जो कला के जितने निकट होगा उतना ही संस्कार युक्त होगा कला संस्कारों की जननी है।